शब्द का अर्थ
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शक :
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पुं० [सं०√शक्+अच्] १. तातार देश का पुराना नाम। २. तातार देश की, एक प्राचीन जाति जिसके कुछ लोगों ने भारत पर आक्रमण किए थे। कहते हैं कि विक्रमादित्य ने उन्हें पूरी तरह से परास्त किया था। जो लोग बच गये थे, वे भारतीय आर्यों और विशेषतः ब्राह्मणों से मिलकर शाकद्वीपी ब्राह्मण कहलाने लगे थे। राजा शालिवाहन का एक नाम। ४. बहुत बड़ा या मारके का युद्ध और उसमें होनेवाली विजय। पुं० [अ०] बहुत कुछ अनुमान पर आधारित ऐसी धारणा कि अमुक काम ऐसे हुआ होगा या अमुक व्यक्ति ने ऐसा किया होगा। जैसे—पुलिस उस पर चोरी का शक कर रही है। |
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शक़ :
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वि० [अ०] जिसमें दरार पड़ी हो। फटा हुआ। विदीर्ण। |
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शक संवत् :
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पुं० [सं०√शक् (सामर्थ्य)+अच्, मध्य० स०] महाराज शालिवाहन द्वारा प्रवर्तित एक संवत् जो ई० सन् ७८ में प्रचलित हुआ था। |
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शक-कार्मुक :
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पुं० [सं० ष० त०] इन्द्र-धनुष। |
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शकट :
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पुं० [सं०√शक्+अटन्] १. छकड़ा। २. गाड़ी। ३. छकडे या गाड़ी भर का बोझ जो २॰॰॰ पलों का एक परिमाण था। ४. एक असुर जिसे कृष्ण ने बाल्यावस्था में मारा था। ५. तिनिश वृक्ष। ६. दे० ‘शकट व्यूह’। |
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शकट-व्यूह :
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पुं० [सं० मध्य० स०] प्राचीन भारत में एक प्रकार की सैनिक व्यूह-रचना जिसके दोनों पक्षों के बीच में सैनिकों की दोहरी पंक्तियाँ होती थीं। |
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शकटी (टिन्) :
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पुं० [सं० शकट+इन्] शकट अर्थात् बैलगाड़ी हाँकनेवाला व्यक्ति। |
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शकर :
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स्त्री० [सं० शकल से फा०] शक्कर। चीनी। |
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शकर-पारा :
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पुं० [फा० शकर पारः] १. एक प्रकार का फल जो नीबू से कुछ बड़ा होता है। २. आटे-मैदे आदि का एक तरह का पकवान जो टुकड़ों में होता है और प्रायः चाशनी में लिपटा होता है। ३. सिलाई में एक प्रकार का टाँका। |
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शकर-पीटन :
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पुं० [?] थूहर की तरह की एक प्रकार की कँटीली झाड़ी। |
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शकर-बादाम :
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पुं० [फा० शकर+बादाम] खूबानी का जर्द आलू नामक फल। |
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शकरखोरा :
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पुं० [फा० शकरखोरः] गोरैया के आकार की एक प्रकार की हरे नीले रंग की बारहमासी चिड़ियां जिसकी दुम गहरी भूरी, पुतलियाँ भूरी और चोंच तथा पैर काले रंग के होते हैं। |
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शकरी :
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स्त्री० [फा० शकर] फालसा। |
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शकल :
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पुं० [सं०√शक् (कर सकना)+कलच्] १. त्वचा। चमड़ी। २. छाल। छिलका। ३. दालचीनी। ४. आँवला। ५. कमल की नाल। ६. चीनी। शक्कर। ७. खंड। टुकड़ा। उदाहरण—पंच भूत का भैरव मिश्रण शम्याओं के शकल निपात।—प्रसाद। ८. एक प्राचीन देश। स्त्री० [सं० शक्ल, मि० सं० शकल=त्वचा] १. चेहरे की बनावट। आकृति। रूप। जैसे—शकल न सूरत, गधे की मूरत। पद-सूरत शकल=चेहरे की बनावट। रंग-रूप। मुहावरा- (किसी की) शकल बिगाड़ना=इतना मारना-पीटना कि आकृति, गढ़न ढाँचा या बनावट। मुहावरा—शकल बनाना=अच्छा या सुंदर रूप धारण करना (या कराना)। ४. उपाय। युक्ति। मुहावरा-शकल निकालना=युक्ति चलना या सूझना। |
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शकली :
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स्त्री० [सं० शकल+ङीष्] सकुची। मछली। |
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शकाँतक :
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पुं० [सं० शक-अंतक, ष० त०] शक जाति का अंत करनेवाला, विक्रमादित्य। |
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शकाब्द :
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पुं० [सं० शक-अब्द, मध्य० स०] राजा शालिवाहन का चलाया हुआ संवत्। शक संवत्। विशेष—यह ईसवीं सन् के ७८ वर्ष पश्चात् आरंभ हुआ था। |
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शकार :
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पुं० [सं० श+कार] १. शकवंशीय व्यक्ति। शकवंश का आदमी। २. संस्कृत नाटकों की परिभाषा में राजा का वह साला जो नीच जाति का हो। |
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शकारि :
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पुं० [सं० ष० त०] शक जाति का शत्रु, विक्रमादित्य। |
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शकील :
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वि० [फा०] [स्त्री०=शकीला] अच्छी शकल-सूरत वाला। सुन्दर। खूबसूरत। |
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शकुंत :
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पुं० [सं०√शक्+उन्त] १. पक्षी। चिड़िया। २. नीलकंठ। ३. एक प्रकार का कीड़ा। |
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शकुंतक :
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पुं० [सं०√शकुन्त+कन्] छोटी चिड़िया। |
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शकुंतला :
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स्त्री० [सं० शकुंत√ला (लेना)+क+टाप्] पुराणानुसार मेनका नामक अप्सरा के गर्भ से उत्पन्न विश्वामित्र की कन्या जिसका विवाह राजा दुष्यंत से हुआ था। |
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शकुंतिका :
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स्त्री० [सं०√शक्+उन्ति+कन्+टाप्] १. छोटी चिड़िया। २. प्रजा। रिआया। |
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शकुन :
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पुं० [सं०√शक् (कर सकना)+उनन्] १. चिड़िया। पक्षी। २. कोई काम आरंभ होने के समय घटित होनेवाली कोई ऐसी विशिष्ट घटना जो उस कार्य के लिए भविष्य के संबंध में शुभ अथवा अशुभ परिणाम सूचित करनेवाले लक्षण के रूप में मानी जाती हो। जैसे—यात्रा के समय बिल्ली का सामने से रास्ता काटकर निकल जाना अशुभ शकुन और गौ या पानी का घड़ा दिखाई देने शुख शकुन माना जाता है। विशेष-प्राचीन काल में प्रायः पक्षियों के बोलने या सामने आने से ही इस प्रकार के शुभाशुभ फलों का अनुमान या कल्पना की जाती थी, इसीलिए इस धारणा का भी पक्षीवाचक शकुन नाम पड़ा था। मुहावरा—शकुन देखना या विचारना=कोई कार्य करने से पहले किसी उपाय से लक्षण आदि देख या पूछकर यह निश्चय करना कि यह काम होगा या नहीं, अथवा काम अभी करना चाहिए या नहीं। ३. शुभ मुहुर्त में होनेवाला कोई शुभ काम। ४. उक्त अवसरों पर गाये जानेवाले गीत। ५. गिद्ध नामक शिकारी पक्षी। |
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शकुन-द्वार :
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पुं० [सं०] यात्रा पर निकलने के समय एक साथ शुभ और अशुभ सगुन होना। |
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शकुन-शास्त्र :
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पुं० [सं० मध्यम० स०] वह शास्त्र जिसमें शकुनों के शुभ और अशुभ फलों का विवेचन हो। शकुन बतलानेवाला शास्त्र। |
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शकुनज्ञ :
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पुं० [सं० शकुन√ज्ञा (जानना)+क] १. शकुनों का शुभाशुभ फल बतलाने वाला व्यक्ति। २. ज्योतिषी। |
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शकुनाहृत :
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पुं० [सं० शकुन-आहृत, तृ० त०] १. एक प्रकार का चावल जिसे दाऊदखानी कहते हैं। २. बच्चों को होनेवाला एक प्रकार का रोग। ३. एक प्रकार की मछली। |
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शकुनि :
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पुं० [सं०√शक्+उनि] १. पक्षी। चिड़िया। २. गिद्ध पक्षी। ३. गंधार राज सुबल के एक पुत्र का नाम। विशेष—यह दुर्योधन के मामा थे तथा बहुत बड़े पापाचारी थे। वि० १. दुष्ट। २. पापचारी। |
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शकुनिका :
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स्त्री० [सं० शकुनि+कन्+टाप्] स्कंद की अनुचरी एक मातृका। |
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शकुनी :
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स्त्री० [सं० शकुन+ङीष्] १. श्यामा पक्षी। २. मादा गौरैया पक्षी। ३. बच्चों को कष्ट देनेवाली एक कल्पित पूतना। |
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शकुनी-मातृका :
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स्त्री० [सं० व्यस्त पद] बालकों की एक प्रकार की कष्टदायक व्याधि जो उनके जन्म से छठे दिन, छठे मास या छठे वर्ष होती है और जिसमें उन्हें ज्वर तथा कंप होता है। |
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शकुनीश्वर :
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पुं० [सं० शकुनि-ईश्वर, ष० त०] पक्षियों के स्वामी, गरुड़। |
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शकुली :
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स्त्री० [सं० शकुल+ङीष्] १. सकुची मछली। २. एक पौराणिक नदी। |
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शकृत :
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पुं० [सं०] १. विष्ठा। गुह। २. गोबर। |
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शकृद्दव्रर :
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पुं० [सं० शकृत-द्वार, ष० त०] मलद्वार। गुदा। |
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शकृद्देश :
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पुं० [सं० शकृत-देश, ष० त०] मलद्वार। गुदा। |
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शक्कर :
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स्त्री० [सं० शर्करा, मि० फा० शकर=चीनी] १. चीनी। २. कच्ची चीनी। खाँड़। पुं० [सं०] १. साँड़। २. बैल। |
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शक्करी :
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स्त्री० [शक्करी+ङीष्] १. वर्णवृत्त के अन्तर्गत चौदह अक्षरोंवाले छंदों की संज्ञा। २. मेखला। ३. एक प्राचीन नदी। वि० [हिं० शक्कर] जिसमें शक्कर या चीनी मिली हो। |
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शक्की :
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वि० [अ० शक+ई (प्रत्यय)] १. जो हर बात की संदेह भरी दृष्टि से देखता हो। २. जिसका शक सदा बना रहता हो। |
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शक्त :
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वि० [सं०√शक् (सकना)+क्त] १. शक्ति। सम्पन्न। समर्थ। २. पठु। ३. मधुरभाषी। |
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शक्तव :
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पुं० [सं० सक्त] सत्तू। |
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शक्ति :
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स्त्री० [सं०√शक् (सकना)+क्तिन्] १. वह शारीरिक गुण या धर्म जिसके द्वारा अंगों का संचालन आत्म-रक्षा, बल-प्रयोग और ऐसे ही दूसरे काम होते हैं। पराक्रम। ताकत। जोर (स्ट्रेन्थ)। जैसे—रोग के कारण उसमें उठने-बैठने की भी शक्ति नहीं रह गई है। २. कोई ऐसा गुण, तत्त्व या धर्म जो कोई विशिष्ट कार्य करता, कराता अथवा क्रियात्मक रूप में अपना परिणाम या प्रभाव दिखाता हो। ताकत। बल। जैसे— (क) बातें याद रखने या सोचने-समझने की शक्ति। (ख) ओषधियों में होनेवाली रोगनाशक शक्ति। ३. कोई ऐसा तत्व जो निश्चित रूप में और बलपूर्वक किसी से कोई काम कराने में समर्थ हो। (फोर्स) जैसे— (क) उसमें उसका मुँह बन्द करने की शक्ति है। (ख) इस इंजन में सौ घोड़ों की शक्ति है। (ग) मंत्रों में आज-कल वह शक्ति नहीं रह गई है। ४. कोई ऐसा तत्त्व या साधन जो अभीष्ट या कार्य की सिद्धि में सहायक होती है। जैसे—आर्थिक शक्ति, सैनिक शक्ति। ५. आधुनिक राजनीति में, वह बड़ा पराक्रमी और बलशाली राज्य जिसके पास यथेष्ट धन, सेना आदि का साधन हो और जिसका दूसरे राज्यों की नीति आदि पर प्रभाव पड़ता हो। (पावर)। जैसे—आज-कल अमेरिका और रूस ही संसार की सबसे बड़ी शक्तियाँ है। ६. धार्मिक क्षेत्रों में ईश्वर, देवी-देवता आदि में माना जानेवाला वह गुण या तत्त्व जिसके फलस्वरूप वे अपना कार्य करते या प्रभाव दिखाते हैं। जैसे—दैवी शक्ति, रौद्री शक्ति। विशेष-हमारे यहाँ कुछ देवताओं की उक्त प्रकार की शक्तियाँ उनकी पत्नी और देवी के रूप में मानी गई है। जैसे—दुर्गा पार्वती लक्ष्मी आदि। ७. तंत्र के अनुसार किसी पीठ की अधिष्ठाती देवी जिसकी उपासना करनेवाले शाक्त कहे जाते हैं। ८. तांत्रिकों की परिभाषा में वह नटी, कापालिकी, वेश्या, धोबिन, नाउन, ब्राह्मणी, शूद्रा, ग्वालिन या मालिन जो युवती रूपवती और सौभाग्यवती हो। ९. स्त्रियों की भग। योनि (तांत्रिक)। १॰. न्याय और साहित्य में, वह तत्त्व जो शब्द और उसके अर्थ से संबंध स्थापित करता अथवा शब्द का अर्थ प्रकट करता है। ११. बोल-चाल में अधिकार या वश। जैसेउसे मनाना तुम्हारी शक्ति के बाहर है। १२. प्रकृति १३. माया। १४. बरछी या साँग नामक अस्त्र। पुं० एक प्राचीन ऋषि जो पराशर के पिता थे। |
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शक्ति-ग्रह :
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पुं० [सं० शक्ति√ग्रह् (ग्रहण करना)+अच्] १. शिव। महादेव। २. कार्तिकेय। ३. भाला-बरदार। ४. साहित्य में वह वृत्ति या शक्ति जिससे शब्द के अर्थ का ज्ञान होता है। |
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शक्ति-धर :
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पुं० [सं० ष० त०] स्कंद। कार्तिकेय। |
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शक्ति-पाणि :
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पुं० [सं० ब० स०] कार्तिकेय। स्कंद। |
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शक्ति-पूजक :
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वि० [ष० त०] १. शक्ति का उपासक। २. वाममार्गी। |
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शक्ति-पूजा :
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स्त्री० [सं० ष० त०] शाक्तों द्वारा होनेवाली शक्ति की पूजा। |
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शक्ति-बोध :
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पुं० [सं० तृ० त०] शब्द शक्तियों से प्राप्त होनेवाले अर्थों का ज्ञान। |
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शक्ति-मत्ता :
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स्त्री० [सं० शक्ति+मतुप्, शक्तिमत्+तल्+टाप्] १. शक्ति सम्पन्न होने की अवस्था या भाव। २. शक्ति का होनेवाला घमंड। |
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शक्ति-मान् (मतृ) :
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वि० [सं० शक्ति+मतुप्] [स्त्री० शक्तिमती] जिसमें यथेष्ट शक्ति हो। बलवान्। बलिष्ठ। ताकतवर। |
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शक्ति-वीर :
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पुं० [सं० ष० त०] वह जो शक्ति की उपासना करता हो। वाममार्गी। शाक्त। |
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शक्ति-वैकल्य :
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पुं० [सं० ष० त०] १. शक्ति का अभाव। कमजोरी। दुर्बलता। २. असमर्थता। |
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शक्ति-शोधन :
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पुं० [सं० ष० त०] शाक्तों का एक संस्कार जिसमें वे किसी स्त्री को शक्ति की प्रतिनिधि या प्रतीक बनाने से पहले कुछ विशिष्ट कृत्य करके उसे शुद्ध करते हैं। |
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शक्तिमान् (मत्) :
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[सं० शुक्तिमत्—नुम्—दीर्घ] एक पर्वत जो आठ कुल-पर्वतों में से है। |
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शक्तिवादी (दिन्) :
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वि० [सं० शक्ति√वद् (कहना)+णिनि] १. शक्ति संबंधी। २. शक्ति का उपासक तथा अनुयायी। शाक्त। |
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शक्तिष्ठ :
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वि० [सं० शक्ति√स्था (ठहरना)+क] शक्ति संपन्न। |
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शक्ती :
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पुं० [सं० शक्ती] एक प्रकार का मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में १८ मात्राएँ होती हैं और इसकी रचना ३+३+४+३+५ होती है। अंत में सगण, रगण या नगण में से कोई एक और आदि में एक लघु होना चाहिए। वि० शक्ति संपन्न। |
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शक्तु :
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पुं० [सं०√शच् (एकत्रित होना)+तुन्] सत्तू। |
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शक्तुक :
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पुं० [सं० शक्तु√कै (मालूम होना)+क] भावप्रकाशानुसार एक प्रकार का बहुत तीव्र और उग्र विष। |
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शक्य :
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वि० [सं०√शक् (सकना)+यत्] [भाव० शक्यता] १. जिसका अस्तित्व में आना संभावित हो। जो हो सकता हो। २. (अर्थ) जो शब्द शक्ति से प्राप्त होता हो। |
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शक्यता :
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स्त्री० [सं० शक्य+तल्+टाप्] शक्य होने की अवस्था, धर्म या भाव। |
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शक्र :
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पुं० [सं०√शक्+रक्] १. दैत्यों का नाश करनेवाले, इन्द्र। २. अर्जुन वृक्ष। ३. कुटज। कोरैया। ४. इन्द्रजौ। ५. ज्येष्ठा नक्षत्र। ६. रगण का एक भेद जिसमें ७ मात्राएँ होती हैं। वि० योग्य। समर्थ। |
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शक्र-केतु :
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पुं० [सं० ष० त०] इन्द्रध्वज। |
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शक्र-गोप :
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पुं० [सं० शक्र√गुप् (छिपाना)+णिच्+अण्] इन्द्रगोप। वीरबहूटी। |
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शक्र-चाप :
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पुं० [सं० ष० त०] इन्द्रधनुष। |
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शक्र-जाल :
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पुं० [तृ० त०]=इन्द्रजाल। |
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शक्र-दिशा :
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स्त्री० [सं० ष० त०] पूर्व दिशा जिसके स्वामी इन्द्र माने जाते हैं। |
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शक्र-देव :
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पुं० [सं० कर्म० स०] इन्द्र। |
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शक्र-दैवत :
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पुं० [सं० ब० स०] ज्येष्ठा नक्षत्र जिसके स्वामी इन्द्र माने जाते हैं। |
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शक्र-धनुष :
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पुं० [सं०] इन्द्र-धनुष। |
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शक्र-ध्वज :
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पुं० [सं०] इन्द्रध्वज। |
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शक्र-नंदन :
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पुं० [सं० ष० त०] अर्जुन जो इन्द्र का पुत्र माना गया है। |
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शक्र-पुर :
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पुं० [सं० ष० त०] इन्द्र के रहने की पुरी, अमरावती। |
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शक्र-पुष्पी :
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स्त्री० [सं० शक्रपुष्प+ङीष्] १. कलिहारी। कलियारी। २. अग्नि-शिखा नामक वृक्ष। ३. नागदमनी। |
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शक्र-भवन :
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पुं० [सं० ष० त०] स्वर्ग। |
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शक्र-माता (तृ) :
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स्त्री० [सं० ष० त०] इंद्र की माता, भार्गी। |
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शक्र-यव :
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पुं० [सं० ष० त०] इन्द्र जौ। कुटज बीज। |
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शक्र-लोक :
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पुं० [सं० ष० त०] इंद्रलोक। स्वर्ग। |
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शक्र-वाहन :
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पुं० [सं० ष० त०] इन्द्र का वाहन अर्थात् मेघ। बादल। |
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शक्र-शरासन :
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पुं० [सं० ष० त०] इन्द्र-धनुष। |
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शक्र-शाला :
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स्त्री० [सं० ष० त०] यज्ञ-भूमि में वह स्थान जिसके स्वामी इन्द्र और अग्नि माने जाते हैं। |
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शक्रजित् :
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पुं० [सं० शक्र√जि (जीतना)+क्विप्, तुक्] १. वह जिसने इंद्र पर विजय प्राप्त की हो। २. मेघनाद। |
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शक्रत्व :
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पुं० [सं० शक्र+त्व] शक्र का धर्म या भाव। |
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शक्राणि :
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स्त्री० [सं० शक्र+ङीष्,आनुक्] १. इन्द्र की पत्नी, शची। इन्द्राणी। २. निर्गुडी। |
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शक्रात्मज :
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पुं० [सं० शक्र-आत्मज, ष० त०] अर्जुन। |
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शक्रानिल :
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पुं० [सं० शक्र-अनिल, ष० स०] ज्योतिष में प्रसव आदि साठ संवत्सरों के बारह युगों में से दसवें युग के अधिपति। |
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शक्राशन :
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पुं० [सं० शक्र√अश् (भोजन करना)+ल्युट-अन] १. भाँग। विजया। भंग। २. कुटज। कोरैया। ३. इन्द्र जौ। |
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शक्रासन :
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पुं० [सं० ष० त०] १. इन्द्र का आसन। २. सिंहासन। |
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शक्रि :
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पुं० [सं० शक+क्रित्, बहु] १. मेघ। बादल। २. वज्र। ३. हाथी। ४. पहाड़। पर्वत। |
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शक्रोत्थान :
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पुं० [ब० स०] इंद्रध्वज नामक उत्सव। शक्रोत्सव। |
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शक्रोत्सव :
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पुं० [सं० ष० त०] इंद्रध्वज नाम का उत्सव। |
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शक्ल :
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स्त्री० [अ०] दे० ‘शकल’ (आकृति या सूरत)। |
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शक्वर :
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पुं० [सं०√शक् (कर सकता)+वनिप्-रच] १. बैल। २. आकाश। |
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शक्वरी :
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स्त्री० [सं० शक्वर+ङीष्] १. गाय। २. उँगली। ३. मेखला। ४. एक प्रकार का छन्द। ५. एक प्राचीन नदी। |
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