शब्द का अर्थ
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शिशु :
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पुं० [सं० शो+कु, सन्वद्भावोद्वित्त्वञ्च] [भाव० शिशुता, शैशव] १. बहुत छोटा बच्चा (बेबी) २. सात-आठ वर्ष तक की अवस्था का बालक (इन्फैन्ट) ३. पशुओं आदि का बच्चा। ४. कार्तिकेय का एक नाम। |
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शिशु-कल्याण केन्द्र :
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पुं० [सं० ष० त०] छोटे बच्चों की देखभाल तथा कल्याण के उद्देश्य से बनाया हुआ स्थान (चाइल्ड वेलफ़ेयर सेंटर)। |
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शिशु-गंध :
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स्त्री० [सं० ब० स] मल्लिका। मोतिया। |
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शिशु-चांद्रायण :
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पुं० [सं० मध्यम० स०] शिशुकृच्छ (दे०)। |
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शिशुक :
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पुं० [सं० शिशु+कन्] १. शिशुमार या सूँस नामक जल-जंतु। २. छोटा शिशु। ३. एक प्रकार का वृक्ष। ४. एक प्रकार का साँप। |
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शिशुकृच्छु :
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पुं० [सं० मध्यम० स०] एक प्रकार का चन्द्रायण व्रत जिसे शिशु चान्द्रायण या स्वल्प चान्द्रायण भी कहते हैं। |
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शिशुता :
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स्त्री० [सं० शिशु+तल्-टाप्] शिशु होने की अवस्था, धर्म या भाव। |
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शिशुताई :
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स्त्री०=शिशुता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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शिशुत्व :
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पुं० [सं० शिशु+त्व]=शिशुता। |
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शिशुधानी :
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स्त्री० [सं० ष० त०] [वि० शिशुधानीय] कुछ विशिष्ट प्रकार के जंतुओं में पेट के आगे की वह थैली जिसमें वे अपने नव-जात बच्चे रखकर चलते हैं। |
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शिशुनाग :
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पुं० [सं० ब० स०] १. एक राक्षस का नाम। २. दे० ‘शैशुनाग’। |
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शिशुपन :
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पुं०=शिशुता। |
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शिशुपाल :
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पुं० [सं० शिशु√पाल् (पालन करना)+अच्] चेदि देश का एक प्रसिद्ध राजा जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था। |
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शिशुमार :
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पुं० [सं० शिशु√मृ (मरना)+णिच्-अच्] १. सूँस नामक जलजंतु। २. एक नक्षत्र-मंडल जिसकी आकृति मगर या सूँस की तरह है। ३. कृष्ण। ४. विष्णु। ५. सौर जगत्। |
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शिशुमार-चक्र :
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पुं० [सं० मध्यम० स०] सौर जगत्। |
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