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शब्द का अर्थ

श्रोत  : पुं० [सं०√श्रु (सुनना)+असुन्-तुट्] १. कर्ण। कान। २. इन्द्रिय (जिनके मार्ग से शरीर के मल तथा आत्मा निकलती है)। ३. हाथी का सूँड़। ४. नदी का वेग या स्रोत।
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श्रोतव्य  : वि० [सं०√श्रु (सुनना)+तव्य] १. जो सुना जाय। २. सुना जाने के योग्य हो।
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श्रोत्र  : पुं० [सं० श्रोत्र+अण्] १. कर्ण। कान। २. वेदों का ज्ञान। ३. वेद।
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श्रोत्र-ग्राह्म  : वि० [सं० तृ० त०] जिसका ग्रहण या ज्ञान श्रोत या कानों के द्वारा हो सकता हो। जो सुनाई पड़ता हो या पड़ सकता हो (ऑडिटरी)।
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श्रोत्रिय  : पुं० [सं० छन्दस्+घ-इय, श्रोत्रादेश] प्राचीन भारत में वह विद्वान जो छन्द आदि कंठस्थ करके उनका अध्ययन और अध्यापन करता था।
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