संसृष्ट/sansrsht

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संसृष्ट  : भू० कृ० [सं०] १. जो एक साथ उत्पन्न या अविर्भूत हुए हों। २. जो आपस में एक दूसरे से मिलें हो। संश्लिष्ट। ३. परस्पर संबद्ध। ४. जो किसी के अंतर्गत अंतर्भूत हों। ५. बहुत आधिक हिला मिला हुआ। बहुत मेल जोल वाला। ६. (काम) पूरा या सम्पन्न किया हुआ। ७. इकट्ठा किया हुआ। संग्रहित। ८. वैद्यक में, (रोगी) जिसका पेट वमन, विरेचन आदि के द्वारा साफ कर दिया गया हो। ९. धर्मशास्त्र में (परिवार) बँटवारा हो चुकने के बाद भी मिलकर एक हो गये हों। पुं० १. घनिष्ठता। हेल-मेल। २. एक पौराणिक पर्वत।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
संसृष्ट-होम  : पुं० [सं०] अग्नि और सूर्य को एक साथ दी जाने वाली आहुति।
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संसृष्टत्व  : पुं० [सं० संसृष्ट+त्व] १ संसृष्ट होने की अवस्था, गुण या भाव। २. संपत्ति का बँचवारा हो के बाद फिर हिस्सेदारों का एक में मिलकर रहना। (समृति)
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संसृष्टि  : स्त्री० [सम० सम्√सृज (बना)+क्तिव+षत्व स्टुत्व] १. सृसष्ट होने की अवस्था, गुण या भाव। २. घनिष्ठता। हेल-मेल। ३. मिलावट। मिश्रण। ४. लगाव। संबंध। ५. बनावट। रचना। ६. संग्रह। ७. धर्म-शास्त्र में बँटवारा या विभाजन हो जाने पर भी परिवारों का फिर मिलकर एक हो जाना। ८. साहित्य में, दो या अधिक काव्यालंकारों का इस प्रकार संसृष्ट होना। या साथ-साथ हो जाना। कि वे सब अलग-अलग दिखाई दें। इसकी गणना एक स्वतंत्र अलंकार के रूप में होती है।
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संसृष्टि (ष्टिन)  : पुं० [सं० सृष्ट+इनि] धर्मशास्त्र में, ऐसे परिवार या संबंधी जो विभाजन हो चुकने पर भी मिलकर एक हो गये हों।
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