साँप/saanp

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साँप  : पुं० [सं० सर्प, प्रा० सप्प] [स्त्री० साँपिन] एक प्रसिद्ध रेंगनेवाला जंतु जो काफी लंबा होता है तथा बिलों, पेड़ों आदि में रहता है। विशेष—इनकी हजारों जातियाँ होती हैं, जिनमें से अधिकतर ऐसी होती हैं जिनके काटने से जीव मर जाते हैं। अगजर, नाग आदि जंतु इसी वर्ग के होते हैं। पद—साँप की लहर=पृथ्वी पर का चिन्ह जो साँप के चलने से बनता है। साँप की लहर=साँप के काटने से उसके जहर के कारण शरीर में होनेवाली वह बेहोशी जिसमें आदमी लहरों की तरह छटपटाता रहता है। साँप के मुँह में=बहुत ही जोखिम या साँसत की स्थिति में। मुहा०—साँप की तरह केंचुली झाड़ना या बदलना= (क) पुराना भद्दा-रूप छोड़कर नया सुन्दर रूप धारण करना। (ख) जैसे समय देखना, वैसा रूप बनाना, या वैसा आचरण-व्यवहार करना। साँप खेलाना=मंत्र बल से या और किसी प्रकार साँप को पकड़ना और उससे क्रीड़ा करना। सांप-छछूँदर की दशा होना=ऐसी विकट स्त्रिति में पड़ना कि दोनों ओर घोर संकट की संभावना हो। विशेष—लोक में ऐसा प्रवाद है कि साँप यदि छछूँदर को एक बार मुँह में पकड़ ले तो उसके लिए छछूंदर को छोड़ना भी घातक होता है और निगलना भी, क्योंकि उसे उगलने पर वह अंधा हो जाता है और निगलने पर कोढ़ी हो जाता है। मुहा०—(किसी को) साँप सूँघ जाना= (क) साँप का काट लेना जिससे आदमी प्रायः मर जाता है। (ख) किसी का इस प्रकार बेसुध होकर पड़ जाना कि मानों उसे सांप ने काट लिया हो और वह बेहोश होकर मरणासन्न हो रहा हो। (किसी के) कलेजे पर साँप लोटना=ईर्ष्याजन्य घोर कष्ट होना। अत्यन्त दुःख होना। २. आतिशबाजी में वह दाना जो जलाये जाने पर साँप की तरह लंबा होता जाता है। ३. वह व्यक्ति जो समय का लाभ उठाकर विश्वासघात करने से भी न चूकता हो।
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साँप-धरन  : पुं० [हिं० साँप+धरना] सर्पधारण करनेवाले, शिव। महादेव।
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साँपड़ना  : अ० [सं० संप्रापण] प्राप्त होना। मिलना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)अ० [सं० संपूर्ण] काम पूरा करके निवृत्त होना। सपरना। उदा०—साँपड़ किया असनान सूरज सारी जप कर।—मीराँ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सांपत्तिक  : वि० [सं०] संपत्ति से संबंध रखनेवाला। संपत्ति का। जैसे—सांपत्तिक व्यवस्था।
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सांपद  : वि० [सं० साम्पद] संपदा-सम्बन्धी। संपदा का।
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सांपातिक  : वि० [सं० संपात+ठञ्—इक] १. संपात-संबंधी। संपात का। २. संपात काल में होने अथवा संपात काल से संबंध रखनेवाला। (ज्योतिष)
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साँपिन  : स्त्री० [हिं० साँप+इन (प्रत्य०)] १. साँप की मादा। २. साँप के आकार की एक प्रकार की भौंरी या शारीरिक चिन्ह जो सामुद्रिक के अनुसार बहुत शुभ माना जाता है। ३. बहुत अधिक दुष्ट या विश्वासधातिनी स्त्री०।
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साँपिया  : वि० [हिं० साँप+इया (प्रत्य०)] साँप के रंग का मैलापन लिये काले रंग का। पुं० उक्त प्रकार का काला रंग।
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सांपेक्षिक  : वि० [सं० संक्षेप+ठञ्—इक] १. संक्षिप्त। २. संकुचित।
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सांप्रत  : अव्य० [सं० साम्प्रत] १. इसी समय। अभी। तत्काल। २. इस समय। आज-कल। ३. उचित। उपयुक्त। ४. सामयिक। वि० किसी के साथ मिला हुआ। युक्त।
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सांप्रतिक  : वि० [सं०] १. जो इस समय या आवश्यकता को देखते हुए ठीक और उपयुक्त हो।
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सांप्रदायिक  : वि० [सं०] [भाव० सांप्रदायिकता] १. संप्रदाय-संबंधी। संप्रदाय का। २. किसी विशिष्ट संप्रदाय से ही संबद्ध रहकर शेष संप्रदायों का विरोध करने या उनसे द्वेष रखनेवाला। ३. विभिन्न संप्रदायों के पारस्परिक विरोध के फलस्वरूप होनेवाला। (कम्यूनल; उक्त सभी अर्थों में)
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सांप्रदायिकता  : स्त्री० [सं०] १. सांप्रदायिक होने का भाव। २. केवल अपने संप्रदाय की श्रेष्ठता और हितों का विशेष ध्यान रकना और दूसरे संप्रदायों के द्वेष रखना। (कम्यूनलिज़्म)
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