शब्द का अर्थ
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					सुस्त					 :
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					वि० [फा०] [भाव० सुस्ती] १. (जीव) जो भली—भाँति और मन लगाकर काम न करता हो। ‘उद्योगी’ का विपर्याय। २. फलतः स्वभाव से अकर्मण्य तथा मन्द गति से काम करनेवाला। ३. चिंता, रोग आदि के कारण अथवा निराश होने या उदास रहने के कारण अस्वस्थ या शिथिल। ४. अस्वस्थ। बीमार। (लश०) ५. जिसके शरीर में बाल न हो। दुर्बल। कमजोर। ६. चिंता, परिश्रम, रोग आदि के कारण जो मन्द या शिथिल हो गया हो। ७. जिसका उत्साह या तेज मंद पड़ गया हो। जैसे–मेरे रुपये माँगने पर वह सुस्त हो गया। ८. जिसकी तीव्रता या प्रबलता कम हो गई हो। जिसकी गति या वेग मंद हो गया हो। जैसे–यह घड़ी कुछ सुस्त है। ९. जिसे कोई काम करने या कोई बात समझने में आवश्यक या उचित से अधिक समय लगता हो। जैसे–इधर की गाड़ियाँ भी बहुत सुस्त हैं। क्रि० वि० सुस्ती से। मंद गति से । जैसे—गाड़ी बहुत सुस्त चल रही है।				 | 
			
			
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					सुस्त—पाँव					 :
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					पुं० [फा० सुस्त+हिं० पाँव] एक प्रकार का चतुष्पाद जन्तु जो प्रायः वृक्षों की शाखा में लटका रहता और बहुत कम तथा बहुत मंद गति से चलता है। (स्लॉफ़)				 | 
			
			
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					सुस्त—रीछ					 :
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					पुं० [फा० सुस्त+हिं० रीछ] एक प्रकार की पहाड़ी रीछ।				 | 
			
			
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					सुस्तनी					 :
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					वि० स्त्री० =सुस्तना।				 | 
			
			
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					सुस्ताई					 :
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					स्त्री० =सुस्ती। उदा०–पंथी कहाँ, कहाँ सुस्ताई।–जायसी।				 | 
			
			
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					सुस्ताना					 :
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					अ० [फा़० सुस्त+हिं० आना (प्रत्य०)] अधिक श्रम करने पर तथा थकावट मिटाने के उद्देश्य से थोड़ी देर के लिए दम लेना या विश्राम करना।				 | 
			
			
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					सुस्ती					 :
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					स्त्री० [फा़० सुस्त] १. सुस्त होने की अवस्था या भाव। शिथिलता। २. आलस्य, चिंता, रोग आदि के कारण उत्पन्न होनेवाली वह अवस्था जिसमें शरीर कुछ—कुछ शिथिल होता है तथा मन में कुछ करने के प्रति अरुचि होती है। ३. पुंस्त्व का अभाव या कमी। ४. बीमार होने की अवस्था। (लश०)				 | 
			
			
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					सुस्तैन					 :
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					पुं०=स्वस्त्ययन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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