शब्द का अर्थ
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सूर :
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पुं० [सं०] [स्त्री० सूरी] १. सूर्य। २. आक। मदार। ३. बहुत बड़ा पंडित। आचार्य। ४. वर्तमान अवसर्पिणी के सत्रहवें अर्हत् कुंथु के पिता का नाम। (जैन) ५. छप्पय छंद के ७१ भदों में से ५४ वाँ भेद जिसमें १६ गुरु, १२॰ लघु, कुल १३६ वर्ण और १५२ मात्राएँ होती हैं। ६. मसूर। ७.दे० ‘सूरदास’। वि० अन्धे या नेत्र-हीन व्यक्ति के लिए आदरसूचक विशेषण। पुं० [सं० शूकर, प्रा० शअर] १. सूअर। २. भूरे रंग का घोड़ा। पुं० [देश०] पठानों का एक भेद। जैसे–शेरशाह शूर। पुं० १.=शूर (वीर)। २.=शूल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूर-कंद :
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पुं० [सं०] जमीकंद। सूरन। ओल। |
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सूर-कांत :
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पुं० =सूर्यकांत। |
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सूर-कुमार :
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[सं० सूर=शूरसेन+कुमार=पुत्र] वसुदेव। |
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सूर-पुत्र :
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पुं० [सं०] सूर्य—पुत्र। (१. सुग्रीव। २. कर्ण। ३. शनि)। |
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सूर-बीर :
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पुं० =शूर-वीर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूर-मुखी :
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पुं० स्त्री० =सूरजमुखी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूर-सुता :
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स्त्री० [सं०] यमुना। |
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सूर-सूत :
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पुं० [सं० ष० त०] सूर्य के सारथि, अरुण। |
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सूरज :
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वि० [सं० सूर+ज] सूर अर्थात सूर्य से उत्पन्न। पुं० १. शनि। २. सुग्रीव। पुं० [सं० शूर+ज] सूर अर्थात बहादुर या वीर की संतान। पुं० [सं० सूर्य] १. सूर्य। रवि। मुहा०–सूरज को दीपक दिखाना=(क) जो स्वयं अत्यन्त कीर्तिशाली या गुणवान् हो, उसे कुछ बतलाना। (ख) जो स्वयं प्रसिद्ध या विख्यात हो, उसका सामान्य परिचय देना। सूरज पर धूल फेंकना=किसी साधु व्यक्ति पर कलंक लगाना या उसका उपहास करना। २. एक प्रकार का गोदना जो स्त्रियाँ दाहिनें हाथ में गुदाती हैं। पुं० दे० ‘सूरदास’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूरज-तनी :
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स्त्री० =सूर्य—तनया (यमुना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूरज-भगत :
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पुं० [सं० सूर्य+भक्त] असम और नेपाल की एर प्रकार की गिलहरी जो भिन्न-भिन्न ऋतुओं के अनुसार रंग बदलती है। |
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सूरज-मुखी :
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पुं० [सं० सूर्यमुखी] १. एक प्रकार का पौधा जिसमें पीले रंग का बहुत बड़ा फूल लगता है। २. उक्त पौधे का फूल जिसका मुख सबेरे से संध्या प्रायः सूर्य की ओर ही रहता है। ३. आतिशी शीशा। (देखें) ४. ऐसा व्यक्ति जिसके शरीर का वर्ण लाल और आँखें प्रकृत या साधारण से कुछ भिन्न रंग की और अप्रसम हों। (एल्बाइनो) विशेष–ऐसे लोगों का शरीर और बाल प्रायः सफेद रंग के और आँखें नीले या पीले रंग की होती है। स्त्री० १. उक्त प्रकार की फूल के आकार की एक प्रकार की आतिशबाजी। २. जलूसों, राज—दरबारों आदि में प्रदर्शन और शोभा के लिए रहनेवाला एक प्रकार का पंखा, जिस पर सलमे-सितारे आदि से सूर्य की आकृति बनी रहती है। ३. सुबह या शाम के समय सूर्य के आस-पास दिखाई पड़नेवाली हलकी बदली। |
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सूरज-सुत :
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पुं० =सूर्य-पुत्र। (१. सुग्रीव। २. कर्ण। ३.शनि।) |
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सूरज-सुता :
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स्त्री० =सूर्य-सुता (यमुना)। |
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सूरजजी :
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पुं० [स० सूर्य+हिं० जी] राजस्थान, मालवे आदि में प्रचलित एक प्रकार के गीत जो शिशु के जन्म के दसवें दिन सूर्य की पूजा के समय गायें जाते हैं। |
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सूरजा :
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स्त्री० [सं०] सूर्य की पुत्री यमुना। |
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सूरंजान :
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पुं० [फा०] केसर की जाति का एक पौधा जिसका कंद दवा के काम में आता है। यह दो प्रकार का होता है। मीठा और कड़ुआ। |
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सूरण :
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पुं० [सं०] सूरन। जमीकंद। |
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सूरत :
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स्त्री० [अ०] १. जीव-जन्तु, पदार्थ, व्यक्ति आदि की आकृति या रूप जिससे उसकी पहचान होती है। शकल (विशेषत |
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सूरत-परस्त :
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वि० [अ० सूरः] [भाव० सूरत-परस्ती] १. रूप का उपासक। २. सौन्दर्योपासक। ३. मूर्ति-पूजक। |
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सूरत-हराम :
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वि० [अ०+फा०] १. जो अपने सौन्दर्य से दूसरों को मुसीबत में डालता हो। २. जो शक्ल-सूरत से अच्छा, परन्तु तात्त्विक दृष्टि से निस्तार हो। |
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सूरताई :
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स्त्री० =शूरता (वीरता)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूरति :
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स्त्री०=सूरत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० =सुरति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूरतिखपरा :
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पुं० [सूरती=सूरत शहर का०+सं० खर्पटी] खपरिया नामक खनिज द्रव्य। |
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सूरदास :
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पुं० [सं०] १. कृष्ण-भक्ति शाखा के प्रसिद्ध वैष्णव कवि जो ‘सूरसागर’, ‘साहित्य लहरी’, आदि काव्य ग्रंथों के रचयिता माने जाते हैं। ये जन्मान्ध थे। [जन्म १५४॰ वि० –मृत्यु १६२॰ वि० ] २. लाक्षणिक अर्थ में अन्धा व्यक्ति। |
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सूरन :
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पुं० [सं० सूरण] एक प्रसिद्घ कंद जो स्वाद में कसैला तथा गुण में अग्नि दीपक और अर्श रोगनाशक होता है। ओल। जमी-कंद। |
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सूरपनखा :
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स्त्री०=शूर्पनखा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूरमल्लार :
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पुं० [सूरदास (कवि)+मल्लार (राग)] सारंग और मल्लार के योग से बना हुआ एक संकर राग जो वर्षा ऋतु में दिन के दूसरे पहर में गाया जाता है। |
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सूरमस :
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पुं० [सं०] १. संभवतः असम-देश की सूरमा नदी की दून और उपत्यका का पुराना नाम। २. उक्त उपत्यका का निवासी। |
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सूरमा :
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पुं० [सं० सूर] [भाव० सूरमापन] योद्धा। वीर। बहादुर। |
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सूरसावत :
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पुं० [सं० शूर+सामंत] १. युद्ध—मंत्री। २. नायक। सरदार। |
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सूरसुत :
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पुं० [सं०] १. शनि ग्रह। २. सुग्रीव। |
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सूरसेन :
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पुं० =शूरसेन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूरसेनपुर :
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पुं० [सं० शूरसेन+पुर] मथुरा नगरी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूरा :
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पुं० [हिं० सुंडी] अनाज के गोले में पाया जानेवाला एक प्रकार का कीड़ा, जिससे अनाज को किसी प्रकार की हानि नहीं होती। अनाज के व्यपारी इसे मांगलिक समझते हैं। पुं० [अ०] कुरान के प्रकरणों में से कोई एक प्रकरण। |
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सूराख :
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पुं० [फा०] १. छेद। छिद्र। २. छोटी कोठरी या घर। (लश०) |
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सूरापण :
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पुं०=सूरमापन। (राज०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूरि :
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पुं० [सं०] १. यज्ञ करनेवाला पुरोहित। ऋत्वज्। २. बहुत बड़ा पंडित या विद्वान् आचार्य। ३. बृहस्पति का एक नाम। ४. कृष्ण का एक नाम। ५. सूर्य। ६. यादव। |
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सूरिंजान :
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पुं०=सूरंजान। |
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सूरी (रिन्) :
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पुं० [सं०] १. विद्वान्। पंडित। आचार्य। २. जैन विद्वान् यतियों की उपाधि। स्त्री० [सं०] १. विदुषी। पंडिता। २. सूर्य की पत्नी। ३. कुंती। ४. राई। स्त्री० [सं० शूल] भाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=सूली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूरुज :
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पुं० =सूर्य।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूरुवाँ :
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पुं० =सूरमा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० =शोरबा। |
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सूरेठ :
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पुं० [देश०] एक हाथ लंबी खपची जिससे बहेलिये चोंगे में से लासा निकालते थे। |
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सूर्मि,सूर्मी :
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स्त्री० [सं०] १. लोहे की बनी हुई स्त्री की मूर्ति। २. पानी बहने की नली। |
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सूर्य :
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पुं० [सं०] १. हमारे सौर जगत का वह सबसे उज्जवल बड़ा और मुख्य ग्रह, जिसकी अन्य सब ग्रह परिक्रमा करते और जिससे सब ग्रहों को ताप तथा प्रकाश प्राप्त होता है। दिनकर। प्रभाकर। विशेष–हमारे यहाँ यह बहुत बड़ा देवता माना गया है और छाया तथा संज्ञा नाम की इसकी दो पत्नियाँ कही गई हैं, और इसके रथ का सारथि अरुण माना गया है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार यह जलती हुई गैसों का बहुत बड़ा गोला है जो समस्त सौर जगत् को ऊर्जा तथा जीवनी—शक्ति प्रदान करता है। पृथ्वी से यह ९३॰॰॰,॰॰॰ मील की दूरी पर है। इसका व्यास ८॰५,॰॰॰ मील है और यह पृथवी से १३॰॰,॰॰॰ गुना बड़ा है, परन्तु इसका घनत्व पृथ्वी के घनत्व के घनत्व का चौथाई ही है। मुहा०–सूर्य को दीपक दिखाना=जो स्वयं परम प्रसिद्ध, महान् या श्रेष्ठ हों, उसके संहंध में कुछ कहना, बतलाना या उसका परिचय देना। सूर्य पर थूकना=जो बहुत महान् हो, उसके संबंध में कोई अनुचित या निंदनीय बात कहना। २. पुराणानुसार सूर्यो की संख्या बारह होने के कारण, साहित्य में बारह की संख्या का सूचक। ३. अपने क्षेत्र या विषय का बहुत बड़ा कृती, ज्ञाता या पंडित। ४. आक। मदार। |
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सूर्य श्री :
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पुं० [सं०] विश्वेदेवा में से एक। |
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सूर्य स्नान :
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पुं० [सं०] धूप—स्नान। |
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सूर्य-कमल :
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पुं० [सं०] सूरजमुखी फूल। |
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सूर्य-कर :
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पुं० [सं०] सूर्य की किरण। |
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सूर्य-काल :
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पुं० [सं०] सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक का समय। २. दिन का समय। ३. फलित ज्योतिष में, शुभाशुभ का विचार करने के लिए एक प्रकार का चक्र। |
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सूर्य-क्रांत :
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पुं० [सं०] १. संगीत में एक प्रकार का ताल। २. एक प्राचीन जनपद। |
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सूर्य-ग्रह :
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पुं० [सं०] १. सूर्य। २. सूर्य पर लगनेवाला ग्रहण। ३. राहु। ४. केतु। ५. घड़े का पेंदा। |
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सूर्य-ग्रहण :
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पुं० [सं०] १. पृथ्वी और सूर्य के बीच में चन्द्रमा के आ जाने और सूर्य आड़ में हो जाने के कारण होनेवाला ग्रहण। (सोलक इक्लिप्स) २. हठयोग की परिभाषा में, वह अवस्था जब प्राण पिंगला नाड़ी से होकर कुंडलिनी में पहुँचते हैं। |
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सूर्य-चित्रक :
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पुं० [सं०] एक प्रकार का उपकरण या यंत्र जिससे सूर्य के चित्र लिए और उसके ताप की घनता नापी जाती है। (हीलियोग्राफ) |
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सूर्य-चित्रीय :
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वि० [सं०] १. सूर्य के चित्र से संबंध रखनेवाला। २. सूर्य—चित्रण से संबंध रखनेवाला। (हीलियोग्राफिक) |
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सूर्य-तनय :
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पुं० [सं०] सूर्य—पुत्र। |
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सूर्य-तनया :
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स्त्री० [सं० ष० त०] यमुना। |
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सूर्य-ताप :
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पुं० [सं०] सूर्य की किरणों से उत्पन्न होनेवाला ताप या गरमी जिससे वातावरण गरम होता है; और जीव—जंतुओं, वनस्पतियों आदि की जीवनी शक्ति प्राप्त होती है। आतप। (इन्सोलेशन) |
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सूर्य-तापिनी :
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स्त्री० [सं०] एक उपनिषद् का नाम। |
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सूर्य-ध्वज :
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पुं० [सं०] शिव का एक नाम। |
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सूर्य-नंदन :
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पुं० [सं०] १. शनि। २. कर्ण। ३. सुग्रीव। |
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सूर्य-नमस्कार :
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पुं० [सं०] आज-कल एक विशिष्ट प्रकार का व्यायाम जो सूर्योदय के समय धूप में खड़े होकर किया जाता है। |
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सूर्य-नाड़ी :
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स्त्री० [सं०] पिंगला नाड़ी। (हठयोग) |
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सूर्य-पर्व्व (न्) :
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पुं० [सं०] किसी नई रात्रि में सूर्य के प्रवेश करने का काल। सूर्य—संक्रांति। |
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सूर्य-पाद :
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पुं० [सं०] सूर्य की किरण। |
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सूर्य-पुत्र :
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पुं० [सं०] १. शनि। २. यम। ३. वरुण। ४. अश्विनी-कुमार। ५. सुग्रीव। ६. कर्ण। |
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सूर्य-पुत्री :
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स्त्री० [सं०] १. यमुना। २. बिजली। विद्युत्। |
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सूर्य-प्रदीप :
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पुं० [सं०] एक प्रकार का ध्यान या समाधि। (बौद्ध) |
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सूर्य-प्रभ :
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वि० [सं०] सूर्य के समान प्रभावाला। पुं० योग में एक प्रकार की समाधि। |
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सूर्य-प्रशिष्य :
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पुं० [सं०] राजा जनक का एक नाम। |
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सूर्य-फणि :
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पुं० [सं०] फलित ज्योतिष में, एक प्रकार का चक्र, जिससे कोई कार्य प्रारम्भ करते समय उसका शुभाशुभ परिणाम निकालते हैं। |
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सूर्य-भक्तक :
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तुं० [सं०] १. सूर्य का उपासक। २. गुल-दुपहरिया। बन्धूक। |
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सूर्य-भ्राता :
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पुं० [सं० सूर्यभ्रातृ] ऐरावत हाथी का एक नाम। |
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सूर्य-मणि :
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पुं० [सं०] सूर्यकांत मणि। |
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सूर्य-रश्मि :
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पुं० [सं०] १. सूर्य की किरण। २. सविता नामक वैदिक देवता। |
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सूर्य-लता :
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स्त्री० [सं०]=सूर्य—वल्ली। |
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सूर्य-लोक :
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पुं० [सं०] सूर्य का लोक। विशेष–ऐसा प्रवाद है कि वीर गति प्राप्त होने के उपरान्त योद्धा इसी लोक में आते हैं। |
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सूर्य-वन :
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पुं० [सं०] एक प्राचीन तीर्थ। |
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सूर्य-वर्चस् :
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वि० [सं०] सूर्य की भाँति अर्थात बहुत अधिक प्रकाशमान्। |
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सूर्य-वल्लभा :
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स्त्री० [सं०] १. हुरहुर। आदित्यभक्ता। २. कमलिनी। |
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सूर्य-वल्ली :
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स्त्री० [सं०] १. अंधाहुली। अर्कपुष्पी। २. क्षीर काकोली। |
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सूर्य-वंश :
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पुं० [सं०] क्षत्रियों की दो आदि और प्रधान वंशों में से एक जिसका आरम्भ इक्ष्वाकु से माना जाता है। |
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सूर्य-वंशीय :
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पुं० [सं०]=सूर्यवंश संबंधी। |
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सूर्य-विकोलन :
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पुं० [सं०] हिन्दुओं में एक प्रकार का मांगलिक कार्य जिसमें चार महीने के बच्चे को सूर्य के दर्शन कराये जाते हैं। |
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सूर्य-वृक्ष :
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पुं० [सं०] १. आक। मदार। २. अंधाहुली। |
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सूर्य-व्रत :
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पुं० [सं०] १. एक प्रकार का व्रत जो सूर्य भगवान् को प्रसन्न करने के लिए रविवार को किया जाता है। २. ज्योतिष में, एक प्रकार का चक्र। |
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सूर्य-शिष्य :
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पुं० [सं०] १. याज्ञवल्क्य का एक नाम। २. राजा जनक का एक नाम। |
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सूर्य-संक्रमण :
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पुं० [सं०]=सूर्य—संक्रांति। |
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सूर्य-संक्रांति :
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स्त्री० [सं०] सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश, जो एक पर्व माना गया है। संक्राति। |
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सूर्य-संज्ञ :
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पुं० [सं०] १. सूर्य। २. आक। मदार। ३. केसर। ४. ताँबा। ५. एक प्रकार का मानिक। |
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सूर्य-सारथि :
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पुं० [सं०] (सूर्य का सारथि) अरुण। |
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सूर्य-सावणि :
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पुं० [सं०] मार्कण्डेय पुराण के अनुसार आठवें मनु का नाम। ये सूर्य और संज्ञा के गर्भ से उत्पन्न (औरस) माने गये हैं। |
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सूर्य-सुत :
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पुं० [सं०]=सूर्य—पुत्र। |
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सूर्यकांत-मणि :
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पुं० [सं०] १. एक प्रकार का कल्पित रत्न या मणि। कहतें हैं कि जब यह धूप में रखा जाता है, तब इसमें से आग निकलने लगती है। सूर्यमणि। २. सूरजमुखी शीशा। आतशी शीशा। ३. आदित्यपर्णी। |
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सूर्यकांति :
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स्त्री० [सं०] १. सूर्य की दीप्ति या प्रकाश। २. तिल का फूल। ३. आदित्यपर्णी नाम का पौधा और उसका फूल। |
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सूर्यकालानल :
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पुं० [सं०] फलित ज्योतिष में, मनुष्य का शुभाशुभ जानने का एक प्रकार का चक्र। |
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सूर्यज :
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वि० [सं०] सूर्य से उत्पन्न। पुं० १. शनिग्रह। २. यम। ३. सावर्णि। ४. कर्ण। ५. सुग्रीव। ६. रेवंत। |
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सूर्यजा :
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स्त्री० [सं०] यमुना नदी। |
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सूर्यपति :
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पुं० [सं०] सूर्यदेवता। |
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सूर्यपत्र :
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पुं० [सं०] १. ईसरमूल। अर्कपत्री। २. हुरहुर। ३. आक। मदार। |
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सूर्यपर्णी :
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स्त्री० [सं०] १. ईसरमूल। अर्कपत्री। २. बनउड़द। मखवन। |
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सूर्यभक्ता :
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स्त्री० [सं०] हुरहुर। आदित्य भक्ता। |
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सूर्यभा :
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वि० [सं०] सूर्य के समान अर्थात बहुत अधिक प्रकाशमान। |
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सूर्यमाल :
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पुं० [सं०] शिव का एक नाम। |
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सूर्यमास :
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पुं० =सौर मास। |
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सूर्यमुखी (खिन्) :
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पुं० , स्त्री० सूरजमुखी। |
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सूर्यर्क्ष :
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पुं० [सं०] वह नक्षत्र जिसमें सूर्य की स्थिति हो। |
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सूर्यवंशी (शिन्) :
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पुं० [सं०] सूर्यवंश में जन्म लेनेवाला। |
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सूर्यवान् (वत्) :
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पुं० [सं०] रामायण में उल्लिखित एक पर्वत |
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सूर्यवार :
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पुं० [सं०] रविवार। |
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सूर्यसावित्र :
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पुं० [सं०] विश्वेदेवों में से एक। |
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सूर्यसूक्त :
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पुं० [सं०] ऋग्वेद का एक सूत्र, जिसमें सूर्य की स्तुति है। |
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सूर्यसूत :
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पुं० [सं०] सूर्य का सारथि, अरुण (देव)। |
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सूर्या :
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स्त्री० [सं०] १. सूर्य की पत्नी, संज्ञा। २. नव विवाहिता स्त्री। नवोढ़ा। ३. इन्द्र—वारुणी। |
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सूर्याकर :
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पुं० [सं०] एक प्राचीन जनपद। (रामायण) |
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सूर्याक्ष :
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पुं० [सं०] विष्णु। वि० सूर्य के समान नेत्रोंवाला। |
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सूर्याणी :
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स्त्री० [सं०] सूर्य की पत्नी, संज्ञा। |
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सूर्यातप :
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पुं० [सं०] १. सूर्यतप। २. धूप। घाम। |
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सूर्यात्जम :
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पुं० [सं०] सूर्य—पुत्र। |
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सूर्यायाम :
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पुं० [सं०] सूर्यास्त का समय। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
सूर्यालोक :
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पुं० [सं०] १. सूर्य का प्रकाश। २. धूप। |
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सूर्यावर्त :
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पुं० [सं०] १. अधकपारी या आधासीस नाम का सिर का दर्द। २. हुरहुर। ३. सुवर्चला। ४. गज पिप्पली। ५. एक प्रकार का जल—पात्र। ६. बौद्धों में एक प्रकार की समाधि। |
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सूर्यांशु :
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पुं० [सं०] सूर्य की किरण। |
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सूर्याश्म (श्मन्) :
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पुं० [सं०] सूर्यकान्त मणि। |
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सूर्याश्व :
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पुं० [सं०] सूर्य का घोड़ा। |
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सूर्यास्त :
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पुं० [सं०] १. सूर्य का अस्त होना। २. सूर्य के अस्त होने का समय। |
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सूर्याह्व :
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पुं० [सं०] १. तांबा। ताम्र।। २. आक। मदार। ३. महेनद्र वारुणी। |
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सूर्यृ-भक्त :
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पुं० [सं०] बंधूक नाम का पौधा और उसका फूल। गुल-दुपहरिया। |
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सूर्येन्दुसंगम :
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पुं० [सं०] अमावस्या, जिसमें सूर्य और इन्दु अर्थात चन्द्रमा एक ही राशि में स्थित रहते हैं। |
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सूर्योच्च :
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पुं० [सं०]=रवि—उच्च।(देखें) |
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सूर्योदय :
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पुं० [सं०] १. सूर्य का उदित होना या निकलना। २. सूर्य के उदित होने का समय। प्रातः काल। सवेरा। |
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सूर्योदय-गिरि :
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पुं० [सं०]=उदयाचल।। |
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सूर्योदयन :
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पुं० [सं०]=सूर्योदय। |
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सूर्योद्यान :
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पुं० [सं०] सूर्यवन नामक तीर्थ। |
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सूर्योपनिषद् :
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स्त्री० [सं०] एक उपनिषद् का नाम। |
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सूर्योपस्थान :
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पुं० [सं०] सूर्य की एक प्रकार की उपासना। |
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सूर्योपासक :
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पुं० [सं०] सूर्य की उपासना करनेवाला। सूर्यपूजक। सौर। |
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सूर्योपासना :
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स्त्री० [सं०] सूर्य की अराधना, उपासना या पूजा। |
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